श्रीलंका के बाद नेपाल?

नेपाल में ये चर्चा आम हो गई है कि वहां श्रीलंका जैसे आर्थिक हालात बन सकते हैँ। हालांकि विशेषज्ञ इस राय से सहमत नहीं हैं, लेकिन वे यह जरूर कहते हैं कि अगर वक्त रहते स्थितियों को ना संभाला गया, तो वो आशंका हकीकत बन सकती है। इन चर्चाओं के बीच ही नेपाल के केंद्रीय बैंक के ताजा आंकड़ों सामने आए। इन आंकड़ों ने देश में चिंता बढ़ा दी है। इन आंकड़ों से साफ है कि देश के आर्थिक संकेतक अच्छी र स्थिति में नहीं हैं। देश में मुद्रास्फीति बढ़ रही है। भुगतान संतुलन का घाटा बढ़ा है।  विदेश में रहने वाले नेपालियों की तरफ से भेजी जाने वाली रकम में गिरावट आई है। इस वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में मुद्रास्फीति की औसत दर 7.14 फीसदी रही। यह उसके पहले के 67 महीनों का सबसे ऊंचा स्तर है। तो यह निर्विवाद है कि देश में महंगाई बढ़ी है। कारण चाहे जो हो। सरकार का कहना है कि इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय स्थितियां हैं। खास कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम और खाद्य पदार्थों के बढ़े भाव का असर नेपाल में भी देखने को मिल रहा है। जबकि विपक्ष का आरोप है कि वर्तमान सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने में नाकाम साबित हुई है।

बहरहाल, ये अच्छी बात है कि नेपाल में जनमत समय रहते जागरूक हो गया है। श्रीलंका में जैसे हालात बने, उनकी वजह से लोग कुछ ज्यादा ही चिंतित नजर आए हैँ। अब अगर इस चिंता को सरकार ने गंभीरता से लिया, तो संभव है कि वह श्रीलंका जैसी स्थिति से देश को बचा ले। उसे उन विशेषज्ञों की राय पर ध्यान देना चाहिए, जो अर्थव्यवस्था की असल सूरत बता रहे हैँ। उनके मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था संकट की तरफ बढ़ रही है। इसकी वजह खराब हो रही अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां हैँ। व्यापार घाटा 18 अरब डॉलर के ऊंचे स्तर तक पहुंच गया है। भुगतान संतुलन की स्थिति बिगडऩे और कर्ज का बोझ बढऩे के भी संकेत हैँ। ये सारी बातें बताती हैं कि अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो रहा है। जिस समय संकट गहरा रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेपाल सरकार ने केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निलंबित कर दिया है। आरोप है कि उनका निलंबन राजनीतिक कारणों से हुआ है। नेपाल सरकार को चाहिए कि वह इस विवाद को जल्द हल करे। वरना, बाद में उसे पछताना पड़ेगा।

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