यह कैसी सोच, थम नहीं रही दरिंदगीदेश की राजधानी दिल्ली के कस्तूरबा नगर में ऐन गणतंत्र दिवस के दिन हुई गैंगरेप की घटना के ब्योरे सन्नाटे में डाल देने वाले हैं। हालांकि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के दखल के बाद सभी दलों के लोगों ने इस मसले को उठाया और पुलिस ने भी देर किए बगैर 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उससे पहले ही घटना से जुड़े विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके थे। इन विडियो और पूरी घटना की पुलिस जांच कर रही है, लेकिन जो शुरुआती तथ्य सामने आ रहे हैं वे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। बताया गया है कि विक्टिम 20 साल की शादीशुदा महिला है, जो एक बच्चे की मां है। पिता की बीमारी के चलते वह मायके में रह रही थी, जहां पड़ोस में रहने वाले एक परिवार का 16 साल का एक लडक़ा उसकी ओर आकर्षित हो गया था। उसके प्रस्तावों को जब इस लडक़ी ने ठुकरा दिया तो पिछले साल नवंबर महीने में उसने खुदकुशी कर ली। आरोपी परिवार ने अपने घर के बच्चे की मौत के लिए इस महिला को जिम्मेदार माना। गणतंत्र दिवस के दिन हुई घटना उसे सबक सिखाने के मकसद से अंजाम दी गई बताई जा रही है। आश्चर्य नहीं कि इस पूरी घटना में परिवार की महिलाएं बढ़-चढ़ कर शामिल रहीं। जिन नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें सात इसी परिवार की महिलाएं हैं। आरोप है कि विक्टिम के साथ गैंगरेप के दौरान कमरे में कई महिलाएं मौजूद थीं, जो रेपिस्टों को और ज्यादा क्रूरता के लिए उकसा रही थीं। वायरल हुए एक विडियो में भी विक्टिम के मुंह पर कालिख पोत, उसे जूतों की माला पहनाकर गलियों में घुमाते हुए महिलाएं ही दिख रही हैं। इस घृणित प्रकरण के आरोपियों को लेकर गुस्सा और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग बिल्कुल जायज है, लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि यह प्रकरण हमारे समाज में प्रचलित पारिवारिक संस्कारों में बैठी पितृसत्तात्मक सोच को बड़ी निर्ममता से उजागर करती है। गौर करने की बात यह है कि न सिर्फ आरोपी परिवार अपने बच्चे की खुदकुशी के लिए उस शादीशुदा महिला की ‘ना’ को जिम्मेदार मान रहा था बल्कि वह यह भी मानता था कि आसपास के तमाम लोगों की भावनाएं उसके साथ हैं। वरना उसे गलियों में घुमाने नहीं ले जाता। उस दौरान भीड़ का जैसा व्यवहार रहा, उससे साबित हुआ कि आरोपी परिवार कुछ गलत नहीं समझ रहा था। कौन मानेगा कि यह वही दिल्ली है, जो करीब दस साल पहले निर्भया के साथ हुई निर्ममता पर इस कदर विह्वल हो गई थी कि उसे इंसाफ दिलाने सडक़ों पर निकल आई थी। जाहिर है, समाजिक चेतना के विकास की राह सीधी रेखा जैसी नहीं होती। रेप जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए रेपिस्टों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने और पुलिस व्यवस्था को और चाक-चौबंद करने की मांग के साथ समाज के मन-मिजाज को दुरुस्त करने का कठिन काम भी हाथ में लेना होगा।

देश की राजधानी दिल्ली के कस्तूरबा नगर में ऐन गणतंत्र दिवस के दिन हुई गैंगरेप की घटना के ब्योरे सन्नाटे में डाल देने वाले हैं। हालांकि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के दखल के बाद सभी दलों के लोगों ने इस मसले को उठाया और पुलिस ने भी देर किए बगैर 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उससे पहले ही घटना से जुड़े विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके थे। इन विडियो और पूरी घटना की पुलिस जांच कर रही है, लेकिन जो शुरुआती तथ्य सामने आ रहे हैं वे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं।
बताया गया है कि विक्टिम 20 साल की शादीशुदा महिला है, जो एक बच्चे की मां है। पिता की बीमारी के चलते वह मायके में रह रही थी, जहां पड़ोस में रहने वाले एक परिवार का 16 साल का एक लडक़ा उसकी ओर आकर्षित हो गया था। उसके प्रस्तावों को जब इस लडक़ी ने ठुकरा दिया तो पिछले साल नवंबर महीने में उसने खुदकुशी कर ली। आरोपी परिवार ने अपने घर के बच्चे की मौत के लिए इस महिला को जिम्मेदार माना। गणतंत्र दिवस के दिन हुई घटना उसे सबक सिखाने के मकसद से अंजाम दी गई बताई जा रही है। आश्चर्य नहीं कि इस पूरी घटना में परिवार की महिलाएं बढ़-चढ़ कर शामिल रहीं। जिन नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें सात इसी परिवार की महिलाएं हैं।

आरोप है कि विक्टिम के साथ गैंगरेप के दौरान कमरे में कई महिलाएं मौजूद थीं, जो रेपिस्टों को और ज्यादा क्रूरता के लिए उकसा रही थीं। वायरल हुए एक विडियो में भी विक्टिम के मुंह पर कालिख पोत, उसे जूतों की माला पहनाकर गलियों में घुमाते हुए महिलाएं ही दिख रही हैं। इस घृणित प्रकरण के आरोपियों को लेकर गुस्सा और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग बिल्कुल जायज है, लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि यह प्रकरण हमारे समाज में प्रचलित पारिवारिक संस्कारों में बैठी पितृसत्तात्मक सोच को बड़ी निर्ममता से उजागर करती है।

गौर करने की बात यह है कि न सिर्फ आरोपी परिवार अपने बच्चे की खुदकुशी के लिए उस शादीशुदा महिला की ‘ना’ को जिम्मेदार मान रहा था बल्कि वह यह भी मानता था कि आसपास के तमाम लोगों की भावनाएं उसके साथ हैं। वरना उसे गलियों में घुमाने नहीं ले जाता। उस दौरान भीड़ का जैसा व्यवहार रहा, उससे साबित हुआ कि आरोपी परिवार कुछ गलत नहीं समझ रहा था। कौन मानेगा कि यह वही दिल्ली है, जो करीब दस साल पहले निर्भया के साथ हुई निर्ममता पर इस कदर विह्वल हो गई थी कि उसे इंसाफ दिलाने सडक़ों पर निकल आई थी। जाहिर है, समाजिक चेतना के विकास की राह सीधी रेखा जैसी नहीं होती। रेप जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए रेपिस्टों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने और पुलिस व्यवस्था को और चाक-चौबंद करने की मांग के साथ समाज के मन-मिजाज को दुरुस्त करने का कठिन काम भी हाथ में लेना होगा।

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