हिमाचल में पांच साल बाद सरकार बदलने का रिवाज इस बार भी रहा कायम

शिमला। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं और बहुमत के लिए 35 सीटों की आवश्यकता रहती होती है। अभी तक के चुनाव नतीजों पर नजर दौड़ाए तो कांग्रेस ने बहुमत का आंकड़ा हासिल कर दिया है । वहीं 18 सीटों पर जीत के साथ भाजपा 25 पर आगे हैं। तीन निर्दलीय चुनाव जीते हैं। नतीजों से साफ है कि पांच साल बाद सरकार बदलने का रिवाज इस बार भी कायम रहने वाला है। लेकिन, इस चुनाव में ऐसे कई कारण रहे, जिनकी वजह से कांग्रेस सत्ता वापसी की तैयारी में है।

प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पांच साल भाजपा और पांच वर्ष कांग्रेस ही सत्ता में रही है। 1982 से 1985 के बीच कांग्रेस की सरकार रही। इसके बाद 1985 से 1990 तक फिर कांग्रेस की सरकार बनी और वीरभद्र सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 1990 से 1992 के बीच भाजपा की सरकार बनी और शांता कुमार सीएम रहे। इसके बाद 1993 से 1998 तक वीरभद्र सिंह के मुख्यमंत्रित्व में फिर कांग्रेस की सरकार बनी। 1998 से 2003 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा, 2003 से 2007 तक वीरभद्र के नेतृत्व में कांग्रेस, 2007-2012 तक फिर धूमल के नेतृत्व में भाजपा 2012-2017 तक वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस और वर्तमान में 2017 से 2022 तक जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी।

हिमाचल प्रदेश के लगभग 2.25 लाख कर्मचारी तथा 1.90 लाख पेंशनर हैं। सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर कर्मचारियों ने विधानसभा का घेराव भी किया। लेकिन सीएम जयराम ने बयान दिया कि यदि पेंशन चाहिए तो चुनाव कर्मचारी भी चुनाव लड़े। इससे कर्मचारी और पेंशनर नाराज हो गए। कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाते हुए सरकार बनने की स्थिति में पहली की कैबिनेट में छत्तीसगढ़ व राजस्थान की तर्ज पर हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने की गारंटी दी। सोलन में हुए रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इसका एलान किया था। इसके अलावा आउटसोर्स व अस्थायी कर्मचारियों के लिए  पॉलिसी नहीं बनने का मुद्दा भी अहम रहा।

इसके अलावा बेरोजगारी व महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा रहा। कांग्रेस ने इसको भुनाते हुए एलान किया कि सत्ता में आने पर पांच साल में पांच लाख रोजगार देने और पहली कैबिनेट में एक लाख नौकरियां देने की गारंटी दी। इसके अलावा महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह, घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट निशुल्क बिजली, हर विधानसभा क्षेत्र में चार अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल खोलने जैसे वादे किए। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से किए से किए गए विकास कार्यों को भी इस चुनाव में भुनाया।

 माना जा रहा है कि निचले हिमाचल में अग्निवीर भर्ती एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा। अग्निवीर भर्ती को लेकर लोगों में नाराजगी रही। कांग्रेस ने इसे बेरोजगारों के साथ खिलवाड़ बताया। प्रियंका गांधी ने एक रैली में कहा था कि अगर केंद्र में कांग्रेस की सत्ता आई तो अग्निवीर को खत्म कर पुरानी भर्ती प्रक्रिया बहाल की जाएगी। इस बार के चुनाव में भाजपा के 21 और कांग्रेस के सात बागी नेता मैदान में थे। यह भी कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव के दौरान भाजपा में दो गुट चल रहे थे। भाजपा में अंतर्कलह व बागियों का फायदा कांग्रेस को हुआ। अनदेखी से धूमल गुट नाराज चल रहा था। वहीं, विपक्ष सीएम जयराम पर अफसरशाही पर कमजोर पकड़ का आरोप लगाकर बार-बार इसे मुद्दा बनाती रही। प्रदेश की पांच हजार करोड़ रुपये की सेब आर्थिकी भी चुनाव में बड़ा मुद्दा माना जा रहा है। कार्टन पर जीएसटी बढ़ाने, कीटनाशकों की सब्सिडी व विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने के मामला हल नहीं होने से किसान-बागवान नाराज चल रहे थे। इसका भी कांग्रेस को फायदा हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *