लालू, नीतीश से कांग्रेस को उम्मीद

विपक्षी एकता में कांग्रेस की निश्चित रूप से एक भूमिका रहेगी। इसलिए जयराम रमेश को बार बार यह कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता नहीं होगी या भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस इतनी मजबूत हो जाएगी कि कोई उसकी अनदेखी नहीं कर पाएगी। इन बातों का कोई मतलब इसलिए नहीं है कि ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के साथ कोई टकराव नहीं है।

जहां टकराव है वहां कांग्रेस कितनी भी मजबूत हो जाए, तालमेल मुश्किल होगा। सो, जब समय आएगा तब विपक्ष की एकता बनेगी और उसमें कांग्रेस की भी भूमिका होगा। इस काम में कांग्रेस को सबसे बड़ी मदद बिहार के नेताओं से मिलेगा। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार इस काम में कांग्रेस के लिए सबसे मददगार होंगे।

लालू प्रसाद ने पटना में कहा है कि वे और नीतीश एक साथ मिल कर सोनिया गांधी के पास जाएंगे। मुख्यमंत्री बनने के बाद से नीतीश का सोनिया और राहुल से मिलना बाकी है। तेजस्वी यादव दिल्ली में सोनिया गांधी से मिल चुके हैं। नीतीश कुमार पिछले दिनों कई दिन दिल्ली में थे और विपक्षी नेताओं से मिले लेकिन तब सोनिया गांधी विदेश में थीं। इसलिए मुलाकात नहीं हो पाई। तब नीतीश ने कहा था कि सोनिया गांधी के विदेश से लौटने के बाद वे उनसे मिलेंगे। बहरहाल, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जब भी मिलें, उससे फर्क नहीं पडऩा है। ये दोनों नेता विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के लिए जगह बनवाएंगे।

बिहार और झारखंड में तो खैर कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है ही बाकी राज्यों में भी लालू और नीतीश ऐसा प्रयास करेंगे। समाजवादी खेमे में कांग्रेस को शामिल कराने में इन दोनों की भूमिका हो सकती है। सबसे दिलचस्प मामला उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और हरियाणा का है। अखिलेश यादव, एचडी कुमारस्वामी, के चंद्रशेखर राव और ओमप्रकाश चौटाला के साथ कांग्रेस का सद्भाव बनाने का काम लालू प्रसाद और नीतीश कुमार कर सकते हैं। इससे चुनावी संभावना पर बड़ा असर होगा।

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